लड़की का जब जन्म हुआ ,
हो गये सब कंगाल।
थाली आगन न बजी ,
बटा न लड्डू थाल।
भाई को नित माँ दे रही ,
खाना नित पुचकार।
लड़की जितना खा रही ,
उतनी ही फटकार।
भैय्या इंग्लिश सीख ले,
लड़की कपड़े फीच।
घर से बाहर जाय जब,
सिर पर पल्ला खीच।
बेटा कॉलेज जा अभी ,
लड़की जा ससुराल।
बन्ने संग अब अइयो,
छठे छमाहे साल।
लड़की तेरा बाप घर,
कम नही अब और ।
हम डोली उठवा चुके,
लड़की तक उस ठोर।
बत्तीस तोले तागदी ,
तीस का कंघिहार ।
बेटे की बहुरिया पे,
माँ ने दीनी वार।
बेटा गया बिदेश को,
बीते बारह साल।
ख़त पकड़ ली बाप ने,
माँ ना पूछो हाल।
बेटा आया न कभी,
काम पड़े थे बीस।
खाली घर माँ रो रही,
हाथ पे रखे सीस।
लड़की तबसे कर रही,
माँ की देखभाल।
लेकिन माँ न पूछती ,
कैसी तू ससुराल ।
लड़की माँ को न दिखे,
खड़ी हुयी थी पास ।
बेटा -बेटा कर रही,
छूट चली जब साँस ।
लड़की अब तो जान ले,
ना बाबा ना देश।
नैहर -नैहर जो करे,
हर सावन संदेश।
Friday, October 23, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
hakikat bayan karti saral kavita.
ReplyDeleteमधु जी अच्छा लिखा है सच्चा लिखा है। बधाई।
ReplyDeleteमधु जी आपने बहुत अच्छी रचना पेश की है, बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही लिखते रहिये।
ReplyDeleteसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद
09953090154
समाज में कन्याओं और महिलाओं की वस्तुस्थिति पर प्रभावी दोहे हैं , आप प्रयास करती रहें . और भी सुन्दर दोहे लिख पाएंगी.
ReplyDeleteहमारी शुभ कामनाएं.
- विजय