Sunday, October 25, 2009
दहेज़ का दानव
एक लड़की जो नन्ही सी कली की तरह होती है। वही लड़की किसी की बेटी, किसी की बहन केरूप में जानी जाती है। यही कली एक दिन फूल बन जाती है। फिर यह एक पौधे का रूप लेती है फिर इस पौधे को जड़ से उखाड़कर दूसरे घर में लगा दी जाती है चाहे वो घर इस पौधे के काबिल हो या न हो। पर जिस घर में लगायी जाती उनसे उम्मीद किया जाता है किये पौधा तुंरत ही( चाहे उस जगह पर लग पाए या न लग पाए ) फल और फूल सब देने लगे। चाहे उसका कोई ध्यान दे या न दे। पर सभी के लिए वह बिल्कुल खरी उतरे। कुछ लोग तो अपनी जिम्मेदारियों से कतराते हुए नजर आ जायेंगे और पत्नी को एक पैसे जरिए बना लेंगे और उसे अपने अनुसार इच्छा न पूरी हुई तो प्रताड़ना भी देने से नही चूकेंगे। आज समाज ऐसी अराजकता और विद्रूपता फैली है कि लोग दहेज़ के कारण आए दिन न जाने कितनी लड़किया जिन्दा जलाई जाती है कितनी बेघर कर दी जाती सिर्फ़ और सिर्फ़ दहेज़ के कारण। मै एक प्रश्न पूछती हू सभी पाठको से क्या आज पैसा इन्सान को इतना प्यारा हो गया है कि उसे अपनी ही बीबी को जिसके साथ अग्नि के सात फेरे लेता है उसे ही अग्नि के हवाले कर देता है। अब तो जैसे दहेज़ लेना एक शान कि बात होती जा रही है। सुधी पाठको को ये लगेगा कि दहेज़ की वकालत कर रही है । पर यकीन नही होगा मेरे घर में कभी भी दहेज़ की माग नही की गयी । जबकि कहने को है नारी सशक्ति करन चल रहा है। ऐसी भी लड़किया है जो नौकरी भी कर रही है फिर भी प्रताड़ना में कोई कमी नही है।
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त्रिपाठी जी आपने ठीक कहा कि नारी सशक्तिकरन का दौर चल रहा है और आए दिन पढी लिखी लडकियां प्रताडित की जा रही हैं। ऐसी भी लड़किया है जो नौकरी भी कर रही है फिर भी प्रताड़ना में कोई कमी नही है। बिल्कुल ठीक है। इसे रोकने के लिए आप जैसे कलम के सिपाही को आगे आना होगा, तभी संभव है कि महिला सशक्तिकरण का असली मायने सामाने आएगा। आपने महिला होने के साथ साथ लाखों महिलाओं का दर्द महसूस किया, बहुत अच्छा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
सुनील पाण्डेय
इलाहाबाद।
09953090154
मधु जी
ReplyDeleteअभिवंदन
आपने अपनी बेहद सरल भाषा और अंतःकरण की अभिव्यक्ति से भाव विभोर कर दिया .
आपके द्बारा दहेज़ और नारी उत्पीडन पर उठाये गए प्रश्नों का मैं भी पुरजोर समर्थन करता हूँ.
कम शब्दों में आपकी रचना ने हृदय को झकझोर दिया .
- विजय
Haaa.... Dahej daanav he
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