Friday, October 23, 2009

लडकी

लड़की का जब जन्म हुआ ,
हो गये सब कंगाल।
थाली आगन न बजी ,
बटा न लड्डू थाल।
भाई को नित माँ दे रही ,
खाना नित पुचकार।
लड़की जितना खा रही ,
उतनी ही फटकार।
भैय्या इंग्लिश सीख ले,
लड़की कपड़े फीच।
घर से बाहर जाय जब,
सिर पर पल्ला खीच।
बेटा कॉलेज जा अभी ,
लड़की जा ससुराल।
बन्ने संग अब अइयो,
छठे छमाहे साल।
लड़की तेरा बाप घर,
कम नही अब और ।
हम डोली उठवा चुके,
लड़की तक उस ठोर।
बत्तीस तोले तागदी ,
तीस का कंघिहार ।
बेटे की बहुरिया पे,
माँ ने दीनी वार।
बेटा गया बिदेश को,
बीते बारह साल।
ख़त पकड़ ली बाप ने,
माँ ना पूछो हाल।
बेटा आया न कभी,
काम पड़े थे बीस।
खाली घर माँ रो रही,
हाथ पे रखे सीस।
लड़की तबसे कर रही,
माँ की देखभाल।
लेकिन माँ न पूछती ,
कैसी तू ससुराल ।
लड़की माँ को न दिखे,
खड़ी हुयी थी पास ।
बेटा -बेटा कर रही,
छूट चली जब साँस ।
लड़की अब तो जान ले,
ना बाबा ना देश।
नैहर -नैहर जो करे,
हर सावन संदेश।