Saturday, October 17, 2009

मै हू


अनकहे शब्दों का भंडार हू मै ,
कहो तो सागर हू मै ,
वीणा की झंकृत झंकार हू मै ,
सुसुप्त जीवन की एक पहेली हू मै ,
एक कटी हुई पतंग हू मै ,
जिसका कोई आदि है न अंत है ,
एक उलझी हुई ,
फिर भी सुलझी हुई पहेली हू मै

2 comments:

  1. फिर भी सुलझी हुई पहेली हू मै ...
    बहुत अच्‍छा लिखा है मधु जी आपने। एक एक शब्‍द कुछ कह रहे हैं। पढकर अच्‍छा लगा।

    सुनील पाण्‍डेय
    इलाहाबाद
    09953090154

    ReplyDelete
  2. बहुत बढिया....

    ReplyDelete